चिकित्सक वीणा प्रभा पर कार्रवाई के लिए सिविल सर्जन ने विभाग को लिखा पत्र
उपाधीक्षक की करीबी तीन जीएनएम को बचाने कोशिश।
बिहारशरीफ । सदर अस्पताल अपने कारनामों से हमेशा सुर्खियों में रहना पसंद करता है चाहे वह किसी भी तरह का मामला हो लेकिन सदर अस्पताल के कर्मचारी और स्वास्थ्यकर्मी पूरी तरह से समझ बैठे है की यहा तो कोई कार्रवाई नही होती सिर्फ जांच के नाम पर ठंडे बस्ते मे आवेदन डाल दिया जाता है। लेकिन अभी हाल ही प्रसव वार्ड मे एक नवजात के पैदा होते ही नर्स और चिकित्सक की लपरवाही से नवजात का हाथ तोड़ने का मामला सुर्खियो में रहा। बिहार थाना क्षेत्र के अलीनगर निवासी विनोद सिंह की पत्नी अमृता सिंह ने जिलाधिकारी को आवेदन देकर कहा था कि जब सदर अस्पताल में प्रसव के दौरान उसके नवजात का हाथ तोड़ दिया गया है। जिसपर जिलाधिकारी ने जांच टीम गठित किया। जांच टीम ने एक चिकित्सक वीणा प्रभा और तीन नर्स को दोषी पाया गया था। मगर सिविल सर्जन ने सिर्फ चिकित्सक वीणा प्रभा पर कार्रवाई के लिए पत्र लिखा जब तीन नर्स भी इस मामले में दोषी पाई गई थी। मगर तीनो नर्स को बचाने का काम सिविल सर्जन के कार्यालय से होने की संभावना प्रतित होता है। हाथ तोडने मामले में चिकित्सक डॉ. वीणा प्रभा और ए ग्रेड नर्स रेणुका कुमारी, अंजु कुमारी व सुलोचना के विरुद्ध प्रपत्र क गठित किया गया है। विभाग इसके आधार पर उन्हें सस्पेंड करेगा। तत्कालीन सीएस डॉ. श्यामा राय की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय जांच टीम में अपर मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी डॉ. कुमकुम प्रसाद व जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. राकेश कुमार ने मामले की जांच के बाद रिपोर्ट में कहा कि प्रसव के दौरान डॉक्टर व कर्मियों ने घोर लापरवाही बरती है। नियम के अनुरूप रोगी विवरणी (बीएचटी, बेड हेड टिकट) नहीं भरी गई। आश्चर्यजनक यह कि पर्चा में लिखी जांच भी कर दी गई। लेकिन उसपर डॉक्टर का हस्ताक्षर ही नहीं था। जांच टीम के पैरों तले जमीन तब खिसकने लगी तब प्रसव वार्ड मे डियुटी पर तैनत जीएनएम अंजु कुमारी और चंचला कुमारी के द्वारा प्रसव कराने आई मरीज के परिजनों से पैसे मांगने का विडियो शोसल मीडिया पर वायरल होने के बाद स्वास्थ्य प्रशासन और जिला प्रशासन हरकात में आई। कार्रवाई के नाम पर लिपापोती का खेल खेला गया। अस्पताल के विश्वासनिय सुत्र बताते है की सदर अस्पताल के उपाधीक्षक के करीबी होने के कारण दोनो जीएनएम को सिर्फ प्रसव वार्ड से हटाकर दुसरे वार्ड में डियुटी पर लगा दिया गया और नालन्दा जिलाधिकारी के द्वारा बैठाये गये जांच टीम ने भी दोनो जीएनएम को पैसे मांगने में अरोपी माना था फिर भी अस्पताल उपाधीक्षक डॉ. अशोक कुमार के द्वारा पैसे मांगने के आरोपी जीएनएम को बचाने का कार्य किया जा रहा है। अस्पताल सुत्र आगे बताते है की उपाधीक्षक अशोक कुमार के द्वारा प्रसव वार्ड मे कुछ ऐसी जीएनएम को डियुटी पर लगाया गया है जो प्रसव की प्रशिक्षण भी नही की हुई है। जब की जो जीएनएम प्रसव की प्रशिक्षण की हुई है उपाधीक्षक के करीबी होने के कारण उस जीएनएम को आराम वाले वार्ड में डियुटी पर रखा है जो तीन सालो से एक ही वार्ड मे जमी बैठी है। बही अस्पताल सुत्र आगे बताते है की अस्पताल उपाधीक्षक अशोक कुमार का सत्ता पक्ष के सफेदपोश के साथ बैठना उठाना है जिस कारण बह अपनी मनमानी करते है । और प्रसव वार्ड मे एक पाँच माह गर्भवती जीएनएम को डियुटी लगा कर परेशान करने का काम किया जा रहा है उपाधीक्षक के द्वारा जिस कारण उपाधीक्षक से बहुत सी स्वास्थ्य कर्मी अन्दर ही अन्दर नराज चल रहे है ।
जनता को जिलाधिकारी नालन्दा से है भरोषा । यहा की जनता को जिलाधिकारी पर पुरा भरोसा है की बो उच्चस्तरीय जाँच करते हुये दोषी जीएनएम पर जरुर कोई कार्यवाई करेगे । बही अपने पद का दुरप्रयोग करने बाले उपाधीक्षक पर विराम लगाने का काम किया जाना चहिये । ताकी जनता को न्याय से भरोसा ना उठे और जनता का भरोसा कानुन पर बना रहे


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